तिल की खेती के लिए जून के आखिरी हफ्ते से लेकर जुलाई के पहले हफ्ते तक का समय सबसे अच्छा है। किसान अगर इसी समय पर बोएं, तो उन्हें ज्यादा फसल मिलेगी। अगर देर से बोएं, तो फसल कम होने का खतरा बना रह सकता है।
जून के आखिरी हफ्ते से लेकर जुलाई के पहले हफ्ते तक का समय तिल की खेती के लिए सबसे अच्छा है।अधिक उपज और आसानी से निराई-गुड़ाई के लिए तिल को पंक्तियों में बोएं। बुआई के 15 से 20 दिनों बाद पौधों की छंटाई करते समय पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सें.मी. रखें. तिल की फसल 90 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
तिल की प्रजातियां : तिल की कुछ उन्नत किस्म को प्रजातियां हैं: गुजरात तिल नं-1, गुजरात तिल नं-2, फुले तिल नं-1, प्रताप, ताप्ती, पद्मा, एन. 8, डी. एम. 1, पूरवा 1, आर.टी. 54, आर.टी. 103, आर.टी. 54, और आर.टी. 103. इनमें से कुछ किस्में, जैसे कि टा-78, शेखर, प्रगति, और तरुण, एकल और सन्मुखी फलियों वाली होती हैं, जबकि आरटी 351 प्रजाति की फलियां बहुफलीय और सन्मुखी होती हैं.
भारत में तिल की खेती : भारत में तिल की खेती कुछ चुनिंदो राज्यों में की जाती है और इसका एक बड़ा हिस्सा विदेशों में निर्यात भी किया जाता है। तिल की सबसे अधिक खेती उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में होती है। और इसके अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंधप्रदेश, गुजरात, तमिलनाडू, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और तेलंगाना में तिल की खेती होती है।
तिल की खेती के लिए उपजाऊ भूमि : तिल की खेती के लिए हल्की रेतीली, दोमट मिट्टी सही रहती है और यह सबसे उपयुक्त मानी जाती है तिल की खेती अकेले भी की जा सकती है और अरहर, मक्का या ज्वार जैसी फसलों के साथ मिलाकर भी उगाई जा सकती है। तिल की बुवाई खेत में कतारों के रूप में करनी चाहिए ताकि खरपतवार निकालना और बाकी काम करना आसान हो जाए।
तिल का तेल, होगी लाखों की कमाई : तिल की खेती एक ऐसी खेती है जो किसान की अच्छी कमाई का जरिया हो सकती है। सामान्यत: तिल का तेल अन्य खाद्य तेलों के मुकाबले दोगुनी कीमत पर बिकता है। अगर सरसों का तेल 200 रुपए किलो बिकता है तो तिल का तेल 400 रुपए किलो बिकता है। आजकल एकदम शुद्ध तेल की डिमांड ज्यादा है। शुद्ध तेल की कीमत भी ज्यादा मिलती है। तिल का तेल निकालने के अलावा तिल को सीधा भी बेचा जा सकता है। तिल कई औषधीय में उपयोग की जाती हैं जिसकी वजह से इसकी मांग पूरे साल बनी रहती है।
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