धान की खेती में अधिक उत्पादन के लिए धान की अच्छी उपज और मिट्टी की सेहत बनाए रखने के लिए गोबर की खाद, कम्पोस्ट या हरी खाद का इस्तेमाल ज़रूरी है। रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल हमेशा मिट्टी जांच के बाद ही करें। बौनी किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर 100-130 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, 50 किलो पोटाश और 25 किलो जिंक सल्फेट की जरूरत होती है। धान एक खरीफ फसल है, जिसे आमतौर पर जून-जुलाई में बोया जाता है, लेकिन कुछ इलाकों में मॉनसून जल्दी आने पर अप्रैल-मई में भी बुवाई हो जाती है। सही समय और तरीका जानने के लिए स्थानीय कृषि विशेषज्ञ या अनुभवी किसानों से सलाह जरूर लें। अगर आप धान की खेती से ज्यादा उत्पादन और मुनाफा चाहते हैं तो इन सरल तकनीकों को अपनाकर बेहतर नतीजे पा सकते हैं।
धान की खेती में अधिक उत्पादन के लिए के लिए जमीन का चुनाव
धान की बेहतर पैदावार के लिए ऐसी जमीन चुनें जहाँ सिंचाई की सुविधा हो और खेत की मेढ़ ठीक से बनी हो, ताकि पानी रुक सके। गर्मियों में खेत की पहली जुताई जरूर कर लें, इससे मिट्टी में छिपे कीट और खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद 2–3 बार जुताई करके पाटा लगाएं, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए और खेत पूरी तरह समतल हो जाए इससे धान की रोपाई आसान होती है और पानी का प्रबंधन बेहतर होता है।
धान की खेती में अधिक उत्पादन के लिए बीज का चुनाव और बीज का उपचार
धान की अच्छी फसल के लिए बीज हमेशा भरोसेमंद स्रोत से खरीदें, ताकि अंकुरण क्षमता 80% से ज्यादा हो और बीज शुद्ध हों। भरे और भारी दानों को चुनें और 2% नमक के घोल में डालें। जो बीज ऊपर तैरें उन्हें हटा दें, और नीचे डूबे बीज ही बुवाई के लिए रखें। बुआई से पहले बीजों को एग्रोसन जीएन या बेविस्टीन जैसी दवा से 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें, ताकि फफूंदजनित बीमारियों से बचाव हो सके।
खाद और उर्वरक
बुवाई से करीब 3 हफ्ते पहले खेत में 15–20 टन सड़ा हुआ गोबर या कम्पोस्ट जरूर डालें। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पौधे मजबूत होते हैं। प्रति हेक्टेयर 80 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश डालें। ये संतुलित पोषण के लिए जरूरी हैं।
यूरिया देने का समय
धान की फसल में यूरिया तीन बार देना चाहिए – 10–12 दिन पर 24 किलो, 30–35 दिन पर 32 किलो और 50–55 दिन पर 24 किलो यूरिया डालें।
कीट और रोग नियंत्रण:
खेत और आसपास सफाई रखें। झोंका रोग के लिए ट्राईसाइक्लाजोल दवा को 0.6 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
सिंचाई प्रबंधन:
जब मिट्टी में नमी कम हो या हल्की दरारें दिखें तो सिंचाई करें। खास ध्यान कल्ले निकलने, गाभा बनने और दाने भरने के समय देना जरूरी है।
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