रासायनिक खाद और कीटनाशकों के नुकसान को देखते हुए अब देशभर के गन्ना किसान प्राकृतिक खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। वे गोबर, जीवामृत और देशी गाय के गोमूत्र से बनी जैविक खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे खेती की लागत कम हो रही है, और ज़मीन की ताकत व गन्ने का उत्पादन दोनों बढ़ रहे हैं। प्राकृतिक खेती से गन्ना उत्पादन बढ़ा, मुनाफा हुआ दोगुना।
प्राकृतिक खेती क्यों ज़रूरी है?
यह खेती मिट्टी, पानी और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती। इसमें रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं होता, जिससे फसल स्वस्थ और पौष्टिक होती है। प्राकृतिक खेती से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और हमारा स्वास्थ्य भी सुरक्षित रहता है। इससे पर्यावरण का संतुलन बना रहता है और भविष्य में खेती टिकाऊ बनी रहती है।
रासायनिक खेती का प्रभाव
रासायनिक खेती में किसान उर्वरक और कीटनाशक जैसे रसायनों का उपयोग करते हैं ताकि फसल जल्दी बढ़े और ज्यादा उत्पादन हो। इससे खेती की उपज बढ़ती है और किसानों को लाभ होता है। लेकिन इससे मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है और जमीन कमजोर हो जाती है। रसायन जमीन, पानी और हवा को भी प्रदूषित करते हैं, जो लोगों और जानवरों के लिए हानिकारक हो सकता है। लगातार रसायन के इस्तेमाल से कीड़े भी उनसे बचने लगते हैं, जिससे अधिक मात्रा में रसायन डालना पड़ता है। इसलिए, रासायनिक खेती से फायदा तो होता है, लेकिन इसके साथ-साथ नुकसान भी होते हैं।
कम खर्च, ज्यादा मुनाफा
प्राकृतिक खेती से किसानों का खर्च कम हो हुआ है और मुनाफा बढ़ा है। रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग करने से लागत घटती है और मिट्टी की सेहत भी बनी रहती है। सही समय पर सिंचाई और बुआई से पैदावार बढ़ती है, जिससे किसान बाजार में अच्छी कीमत पा सकते हैं। इस तरह, प्राकृतिक खेती से किसान अपनी आय को बेहतर बना कर आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं।