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मक्का की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी पहचान करते किसान

मक्का के प्रमुख रोग और कीट और उनके प्रभावी नियंत्रण उपाय

Ashish Chouhan 1 week ago 0 3

मक्का के प्रमुख रोग और नियंत्रण को समझना हर किसान के लिए जरूरी है। मक्का एक बहुत ही जरूरी फसल है, लेकिन बारिश या गर्मी के मौसम में इसमें कई तरह के कीट और बीमारियाँ लग जाती हैं, जो फसल को बर्बाद कर सकती हैं। चलिए जानते हैं कि मक्के में कौन-कौन से कीट और रोग आमतौर पर लगते हैं और उनसे कैसे बचा जाए। 

 मक्के में लगने वाले कीट

  1. तना छेदक: तना भेदक सुंडी मक्के के लिए सबसे खतरनाक कीट मानी जाती है। इसकी लंबाई लगभग 20–25 मिमी होती है। इसका रंग स्लेटी सफेद होता है, सिर काला और शरीर पर चार भूरे रंग की लंबी लाइनें होती हैं। यह सुंडी मक्का के तनों में सुराख कर अंदर घुस जाती है और पौधे को अंदर से खा जाती है। छोटे पौधों में गोभ (मध्य भाग) सूख जाता है, जबकि बड़े पौधों में यह बीच के पत्तों को नुकसान पहुंचाती है।
  2. मक्का का कटुआ कीट: कटुआ कीट की सूँडी काले रंग की होती है। यह दिन में मिट्टी के अंदर छुपा रहता है और रात को नए उगे पौधों को मिट्टी के पास से काट देता है कटुआ कीट मिट्टी में छुपा रहता है और जैसे ही पौधा उगता है, तुरंत उसे नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है। यह कीट पौधे के कोमल तने को जमीन के पास से काट देता है, जिससे फसल को बहुत नुकसान होता है।
  3. मक्का की सैनिक सुंडी : सैनिक सुंडी हल्के हरे रंग की होती है, इसकी पीठ पर धारियाँ होती हैं और सिर पीले-भूरे रंग का होता है। बड़ी सुंडी हरी-भरी होती है और उसकी पीठ पर गहरी धारियाँ साफ़ दिखती हैं। यह कीट कुंड मार के चलता है, यानी धीरे-धीरे और छुपकर अपने शिकार के पास पहुंचता है। सैनिक सुंडी मक्का के ऊपर के पत्ते और बाली के नर्म तने को काट देती है, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है।
  4. फॉल आर्मीवर्म: यह कीट एक मादा पतंगा अपने जीवनकाल में अकेले या समूह में 1000 से ज्यादा अंडे देती है। ये अंडे 4 से 6 दिनों में फूटते हैं। इसकी लार्वा मुलायम त्वचा वाले होते हैं। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, उनका रंग हल्का हरा, गुलाबी या भूरा हो जाता है। लार्वा 14 से 18 दिन तक पत्तियों के किनारों, निचली सतह और मक्के के भुट्टे को खाते हैं। इसके बाद ये प्यूपा (कोकून) में बदल जाते हैं, जो लाल भूरे रंग के होते हैं।

कीट नियंत्रण के उपाय

  • मक्का की बुवाई हमेशा समय पर करनी चाहिए। सही समय पर बोने से पौधे अच्छी तरह बढ़ते हैं और कीटों का हमला कम होता है।
  • फसल लगाते समय पौधों के बीच उचित दूरी यानी अनुशंसित पौध अंतरण का ध्यान रखें, ताकि पौधे आराम से बढ़ सकें।
  • उर्वरकों का इस्तेमाल संतुलित मात्रा में करें। खासकर नाइट्रोजन की ज्यादा मात्रा से बचें, क्योंकि यह कीटों को आकर्षित करता है।
  • खेत में पड़े पुराने खरपतवार और फसल के अवशेषों को जल्दी से नष्ट कर देना चाहिए, ताकि कीट और रोग न बढ़ें।
  • अगर पौधों में मृत गोभ दिखे तो प्रभावित पौधों को तुरंत उखाड़कर नष्ट कर दें, ताकि रोग फैलने से रोका जा सके।
  • मक्का की कटाई के बाद खेत में बचे हुए अवशेष, खरपतवार और अन्य पौधों को साफ कर देना जरूरी है, जिससे अगली फसल स्वस्थ रहे।
  • कीट नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ 5 से 10 ट्राइकोकार्ड का प्रयोग करें, जो प्राकृतिक तरीके से कीटों को रोकता है।
  • कीट नियंत्रण के लिए जैविक कीटनाशी बायो सेवियर की 200 मिली मात्रा प्रति एकड़ में छिड़काव करें, यह फसल को स्वस्थ रखता है।

मक्के की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग 

  • पत्ती झुलसा: मक्के की खेती में पत्ती झुलसा एक ऐसा रोग है, जो चुपचाप फसल को भीतर से कमजोर करने लगता है। शुरुआत में इसके लक्षण नीचे की पत्तियों पर नजर आते हैं लंबी, अंडाकार और भूरे रंग की धारियाँ या धब्बे। ये धब्बे धीरे-धीरे फैलते हैं और पत्तियों को पूरी तरह सूखा देते हैं। 
  • तना सड़न: मक्का की खेती में अगर बारिश जरूरत से ज्यादा हो जाए और खेतों में पानी भर जाए, तो एक बड़ी समस्या चुपचाप दस्तक देती है तना सड़न रोग। इस बीमारी की शुरुआत आमतौर पर पौधे की पहली गांठ से होती है। वहां तने की पोरियों पर जलीय यानी पानी जैसे धब्बे दिखने लगते हैं। कुछ ही समय में ये हिस्से गलने लगते हैं और एक अजीब सी, एल्कोहल जैसी गंध आने लगती है। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, पौधे की पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं और धीरे-धीरे सूख जाती हैं। अंत में पूरा पौधा बेजान सा हो जाता है न वो बढ़ पाता है, न ही दाना दे पाता है।
  • भूरा धारीदार मृदुरोमिल आसिता रोग: यह एक फफूंद जनित रोग है, जो मक्का की पत्तियों को सीधे तौर पर नुकसान पहुँचाता है। बारिश और नमी वाले मौसम में इसका फैलाव सबसे ज़्यादा होता है। शुरुआत में पौधे की पत्तियों पर हल्की हरी या पीली रंग की धारियाँ दिखती हैं। ये धारियाँ आमतौर पर 3 से 7 मिलीमीटर चौड़ी होती हैं। कुछ समय बाद ये धारियाँ गहरी लाल हो जाती हैं। नम मौसम में, खासकर सुबह के समय, इन धारियों पर सफेद रुई जैसी फफूंद दिखने लगती है। यही इस रोग की एक खास पहचान होती है।
  • रतुआ: यह रोग मक्का के पौधों की पत्तियों पर सीधा असर डालता है। शुरुआत में पत्तियों की सतह पर छोटे, लाल या भूरे रंग के अंडाकार और उभरे हुए धब्बे नजर आते हैं। इन धब्बों को जब छूते हैं, तो हाथ पर स्लेटी रंग का पाउडर चिपक जाता है। ऐसा लगता है जैसे पत्तियों पर कोई महीन फफोले बन गए हों। ये आमतौर पर एक सीधी लाइन में पड़ते हैं, जो इस रोग की खास पहचान है। यह रोग मुख्य रूप से अधिक नमी की स्थिति में फैलता है — खासकर जब खेत में जलभराव हो या लगातार बारिश हो रही हो।

नियंत्रण के उपाय

मक्का की बुवाई से पहले हमेशा बीज का अच्छे से उपचार करना जरूरी है। खेत को पूरी तरह से खरपतवार मुक्त रखना चाहिए ताकि फसल को पोषण और जगह मिल सके। खेत की तैयारी करते वक्त अच्छी सफाई करें और गहरी जुताई करके खेत को तेज धूप में खुला छोड़ दें, इससे मिट्टी में मौजूद कीट और रोगों का नाश होता है। फसल में रोगों से बचाव के लिए प्रति एकड़ बायोवेल का जैविक कवकनाशी बायो ट्रूपर 500 मिली की मात्रा में छिड़काव करें, जिससे फसल स्वस्थ रहती है।

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