मूंगफली न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट होती है, बल्कि यह भारत की एक प्रमुख तेल वाली (तिलहनी) फसल भी है। लेकिन कई बार इसकी खेती में कुछ रोगों का हमला हो जाता है, जो फसल को नुकसान पहुंचाते हैं और उत्पादन घटा देते हैं। मूंगफली की फसल को बर्बाद कर देने वाले 3 सबसे आम और खतरनाक रोग, उनके लक्षण, और उनका सही इलाज।
काली फफूंदी: मूंगफली की फसल का सबसे खतरनाक रोग
यह बीमारी बीज और अंकुर की शुरुआती अवस्था में पौधों को प्रभावित करती है। बीज अक्सर मिट्टी में ही सड़ जाते हैं जिससे अंकुरण नहीं हो पाता। यदि अंकुर निकल भी आता है, तो उसके बीज-पत्र पर भूरे रंग के गोल धब्बे दिखते हैं। तना धीरे-धीरे काला पड़कर सड़ने लगता है और बड़े पौधों के तने की जड़ पर काले सड़े हुए गाँठ बन जाते हैं। अंत में पूरा पौधा सूख जाता है।
काली फफूंदी से बचाव और इलाज के उपाय
- बीमार पौधों और जंगली घास (खरपतवार) को खेत से हटा दें।
- खेत में पानी जमा न हो, इसके लिए पानी निकलने का अच्छा इंतजाम करें।
- बोने से पहले बीज को थायरम और कार्बेन्डाज़िम दवाओं से उपचारित करें।
- कार्बेन्डाज़िम दवा को 1 लीटर पानी में 1 ग्राम मिलाकर इस्तेमाल करें।
मूंगफली की पत्तियों पर भूरा और काला धब्बा रोग
इस रोग में पत्तियों पर पीले घेरे वाले भूरे धब्बे दिखाई देते हैं, जो धीरे-धीरे काले गोल धब्बों में बदल जाते हैं। ये धब्बे कोयले जैसे लगते हैं और समय के साथ पत्तियाँ झड़ने लगती हैं। इससे पौधे की खाद बनाने की प्रक्रिया यानी फोटोसिंथेसिस पर असर पड़ता है।
इस रोग से फसल को कैसे बचाएं?
- रोग लगी (संक्रमित) पत्तियाँ तोड़कर हटा दें।
- नाइट्रोजन खाद एक साथ ज्यादा न दें, थोड़ा-थोड़ा करके दें।
- मैनकोजेब (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) या हेक्साकोनाजोल (1 मिली प्रति लीटर पानी) की दवा का छिड़काव करें।
मूंगफली में तना सड़न रोग
यह बीमारी तने के निचले हिस्से को सड़ा देती है, जिससे पौधा अचानक झुकने या गिरने लगता है। जड़ें काली होकर सड़ जाती हैं और पूरा पौधा बर्बाद हो सकता है।
तना सड़न से बचाव
- एक ही खेत में हर बार मूंगफली न उगाएं।
- दूसरी फसलें भी बारी-बारी से लगाएं।
- बीज को ट्राइकोडर्मा या थायरम दवा से पहले ट्रीट (उपचार) करें।
- कार्बेन्डाज़िम की 1 ग्राम दवा को 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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