सोयाबीन की फसल हर साल किसी न किसी बीमारी की चपेट में आ ही जाती है। कई बार किसान शुरुआत में रोगों के संकेत पहचान नहीं पाते। जब तक पता चलता है, तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है। लेकिन अगर समय रहते लक्षणों पर ध्यान दिया जाए और सही कदम उठाए जाएं, तो फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।
सोयाबीन की फसल में रोग लगने के मुख्य कारण
1. पत्ती झुलसा
यह बीमारी का कारण एक फफूंद होता है जब फसल पर इसका असर होता है तो सबसे पहले पत्तियों, तनों और फलियों पर भूरे से काले रंग के छोटे-छोटे 1 धब्बे दिखाई देने लगते हैं। धीरे-धीरे पत्तियाँ सूखने और झुलसने लगती हैं। अगर बीमारियों को समय पर न पहचाना जाए, तो उत्पादन घट सकता है।
बचने के उपाय- सबसे पहले बीज को बोने से पहले शोधन करना जरूरी है। इसके लिए आप Carbendazim या Thiram को 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से इस्तेमाल करें। जब फसल बढ़ने लगे, तो हर 10–12 दिन पर Mancozeb (0.25%) या Carbendazim का स्प्रे करें। यह फफूंद के असर को रोकता है।
2. चारकोल सड़न
यह रोग सोयाबीन की फसल में फेजियोलिना नामक फफूंद से होता है। आमतौर पर मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में इसका प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है। रोग की शुरुआत में नवजात पौधे मुरझाने लगते हैं। तनों का रंग लाल-भूरा हो जाता है और कुछ समय बाद पत्तियां पीली पड़कर गिरने लगती हैं।
बचने के उपाय – फसल की सेहत बनाए रखने के लिए खेत में समय-समय पर जैविक खाद डालें। बुवाई से 3–4 हफ्ते पहले खेत को पानी से भर देना चाहिए ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे। बीज को Captan या Thiram से 3–4 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से ट्रीट करें। साथ ही, Trichoderma harzianum या Trichoderma viride का 4–5 ग्राम प्रति किलो बीज उपयोग करना फायदेमंद रहता है।
3. पीला मोजेक रोग
यह रोग मूंग में पीला मोजेक वायरस के कारण फैलता है, जिसे सफेद मक्खी (Bemisia tabaci) फैलाती है। शुरुआत में पत्तियों पर पीले धब्बे बनते हैं, जो बाद में पूरे पत्ते को पीला कर देते हैं। इससे पौधे में खाना बनाने की प्रक्रिया बाधित होती है और उपज कम हो जाती है।
बचने के उपाय- इस रोग से बचाव के लिए सफेद मक्खी को नियंत्रित करना जरूरी है। बुवाई के 20–25 दिन बाद, हर 10–15 दिन के अंतराल पर किसी एक कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। इसके लिए आपDimethoate 30 EC (Rogor), Oxydemeton-methyl 25 EC (Metasystox), Phosphamidon / Malathion 50 EC (400 मि.ली.) में से कोई एक चुनें। 250 मि.ली. दवा को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़कें।
4. सामान्य मोजेक
यह रोग पत्तियों और फलियों को प्रभावित करता है। पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और नीचे की ओर मुड़ने लगती हैं। इससे बीज बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है और उपज घट जाती है।
बचने के उपाय- सबसे पहले बीमार पौधों को तुरंत उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए, ताकि बीमारी फैल न सके। रोग फैलने से रोकने के लिए प्रति हेक्टेयर इमिडाक्लोप्रिड (100–125 मि.ली.), एसीफेट (625 ग्राम) या थायामेथोक्साम (100 ग्राम) का छिड़काव करें। साथ ही, नीम की सूखी पत्तियों या बीजों का 5% घोल बनाकर (5 किलो पाउडर को 100 लीटर पानी में मिलाकर) समय-समय पर फसल पर छिड़काव करें। यह एक प्राकृतिक तरीका है।
5. बैक्टीरियल ब्लाइट
यह रोग ठंड के मौसम में अधिक होता है। पत्तियों, तनों और फलियों पर गीले, कोणीय धब्बे बनते हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे सूखने लगते हैं जिससे पत्तियां मुरझा जाती हैं।
बचने के उपाय- रोग प्रतिरोधी किस्में जैसे PK 472 और JS 335 लगाएं। फसल पर Carbendazim दवा का 0.2% घोल छिड़कें। फसल चक्र अपनाएं जिसमें दलहनी फसलें बार-बार ना लगाई जाएं।
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