मृदा स्वास्थ्य परियोजना भारत सरकार की एक योजना है जो किसानों की मिट्टी की जांच कर उनकी मदद करती है। इसका मकसद है मिट्टी की सेहत बेहतर बनाना और किसानों को उनकी जमीन की उर्वरता के बारे में सही जानकारी देना। इस योजना से किसानों को मिट्टी की जांच के बाद सही खाद और पोषक तत्वों की सलाह मिलती है। साथ ही, यह योजना जैविक खेती को भी बढ़ावा देती है और खेती को ज्यादा टिकाऊ बनाती है।
राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता प्रबंधन परियोजना के उद्देश्य
- देश भर में मिट्टी की जांच और पोषक तत्व प्रबंधन को बढ़ावा देना।
- सभी किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड देना।
- मिट्टी की उर्वरता और फसल की पैदावार बढ़ाना।
- पोषक तत्वों का सही और संतुलित इस्तेमाल (आईएनएम) को बढ़ावा देना।
- जैविक खेती को प्रोत्साहित करना।
राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता परियोजना (NPMSF) के कार्यक्षेत्र एवं पद्धति
किसानों की जमीन से समय-समय पर मिट्टी के नमूने लिए जाते हैं ताकि मिट्टी की सेहत का पता चल सके। ये नमूने खेत के आकार के हिसाब से लिए जाते हैं — जैसे सिंचित खेतों में हर 2.5 हेक्टेयर से और बारिश पर निर्भर खेतों में हर 10 हेक्टेयर से। GPS और रेवेन्यू मैप की मदद से यह सुनिश्चित किया जाता है कि नमूने सही जगह से लिए जाएं। फिर ये नमूने स्थिर, मोबाइल या गांव स्तर की प्रयोगशालाओं में भेजे जाते हैं, जहां मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाशियम, pH, इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी, कार्बनिक कार्बन और अन्य जरूरी पोषक तत्वों की जांच की जाती है।
किसानों को मिलने वाले लाभ
- मिट्टी की जानकारी मिलने से सही फसल और खाद चुन पाते हैं।
- उर्वरकों का सही इस्तेमाल होने से खर्च कम होता है।
- संतुलित पोषण से फसल की पैदावार बढ़ती है।
- मिट्टी की सेहत सुधरती है और उपजाऊ बनी रहती है।
- जैविक और सूक्ष्म पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग होता है।
वित्तीय सहायता कैसे मिलेगी
इस योजना के अंतर्गत स्थिर, मोबाइल और मिनी मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिए ₹5 लाख से ₹30 लाख तक की सहायता दी जाती है। जैव उर्वरक और वर्मी कंपोस्ट इकाइयों के लिए ₹20 लाख तक की वित्तीय मदद मिलती है।
राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता परियोजना के तहत सहायता पाने के लिए किसान समूह, पंचायत या संस्था को अपने राज्य के कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में आवेदन करना होता है। प्रस्ताव तैयार कर जमा करने के बाद, उसकी जांच होती है और मंजूरी मिलने पर अनुदान की राशि लाभार्थी के खाते में भेजी जाती है।
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