भारत में चमेली की खेती लंबे समय से की जा रही है और यह न केवल पारंपरिक, बल्कि व्यावसायिक रूप से भी बेहद फायदेमंद मानी जाती है। चमेली के फूलों की भीनी-भीनी खुशबू की मांग इत्र उद्योग, पूजा-पाठ, शादी-विवाह और तमाम सांस्कृतिक आयोजनों में हमेशा बनी रहती है। लेकिन अब एक नई और गंभीर चुनौती सामने आई है, जिसने किसानों की चिंता बढ़ा दी है।
चमेली की खेती पर नया खतरा
पुणे स्थित ICAR–Floriculture Research Directorate (ICAR-DFR) के वैज्ञानिकों ने चमेली के फूलों को नुकसान पहुंचाने वाली एक नई कीट प्रजाति की खोज की है, जिसका नाम है C. icardiflores। यह कीट Blossom Midge (ब्लॉसम मिज) श्रेणी का है, जो खासतौर पर चमेली की कलियों पर हमला करता है, जिससे फूल बनने से पहले ही कली सड़ जाती है या गिर जाती है। शुरुआत में यह कीट Contarinia maculipennis जैसा दिखता है, लेकिन वैज्ञानिक अनुसंधान से यह स्पष्ट हो गया है कि C. icardiflores एक नई और अलग प्रजाति है।
कहां और कैसे करता है नुकसान?
- यह कीट चमेली की फूलों की कोमल कलियों पर हमला करता है।
- कली में घुसकर उसका अंदरूनी भाग खा जाता है, जिससे कली सूख जाती है, झड़ जाती है या फूल बनने से पहले ही खराब हो जाती है।
- यह कीट 16 से 21 दिनों में पूरा जीवनचक्र पूरा कर लेता है — यानी बहुत तेजी से फैलता है।
- एक ही सीजन में यह सैकड़ों पौधों को प्रभावित कर सकता है।
भारत में चमेली की खेती: कहां और कैसे होती है?
भारत में चमेली की खेती न केवल पारंपरिक है, बल्कि व्यावसायिक दृष्टि से भी बेहद फायदेमंद मानी जाती है। इसकी भीनी खुशबू और सुंदरता के चलते इसकी मांग सालभर बनी रहती है। भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में बड़े पैमाने पर चमेली की खेती होती है।
मुख्य प्रजातियाँ:
- अरेबियन चमेली (Jasminum sambac)
- स्पेनिश चमेली (Jasminum grandiflorum)
खेती के लिए ज़रूरी बातें:
- अच्छी जलनिकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।
- हल्की गर्मी और भरपूर धूप वाली जगह चाहिए।
- सुबह के समय और बंद कलियों की कटाई करें – इससे ताज़गी बनी रहती है।
- नियमित छंटाई करने से पौधे स्वस्थ रहते हैं और गुणवत्ता बेहतर होती है।
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