देशभर में हर साल बरसात और बाढ़ के दौरान पशुपालकों के सामने हरे और सूखे चारे की भारी किल्लत खड़ी हो जाती है। खासतौर पर पंजाब जैसे इलाकों में, जहां हाल ही की बाढ़ ने हालात और बिगाड़ दिए हैं, वहां गाय, भैंस, बकरी जैसे पशु चारे की कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे समय में साइलेज (Silage) एकमात्र ऐसा विकल्प बनकर उभरता है, जो स्वस्थ, पौष्टिक और लंबे समय तक सुरक्षित रहता है।
क्या है साइलेज और क्यों है यह जरूरी?
साइलेज एक तरह से हरे चारे को बचाकर रखने का तरीका है, जिससे उसका पोषण लंबे समय तक बना रहता है। जब खेत में हरा चारा बहुत ज्यादा हो, तो उसे साइलेज बनाकर बाद में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह खासकर तब काम आता है जब बाढ़, सूखा या ठंड के मौसम में ताजा चारा नहीं मिल पाता ऐसे समय में यह पशुओं के लिए अच्छा खाना बन जाता है।
साइलेज बनाने का सही समय और तरीका
- चारे की कटाई सुबह के समय करें, ताकि दिनभर उसे अच्छे से सुखाया जा सके।
- जब चारे में 15–18% नमी रह जाए, तभी साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त माना जाता है।
- जमीन पर चारा कभी न सुखाएं, इससे फंगस लगने का खतरा रहता है।
- लोहे के स्टैंड, जाली या छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर चारे को हवा में टांगकर सुखाएं।
- फंगस लगा चारा बिल्कुल न दें, इससे पशुओं की सेहत बिगड़ सकती है।
कौन-सी फसलें चुनें?
- पतले तनों वाली फसलें जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा इत्यादि।
- फसल को पकने से पहले ही काटें, फिर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर सुखाएं।
- पतले तने वाली फसलें जल्दी सूखती हैं, जिससे फंगस का खतरा कम हो जाता है।
बिना ट्रेनिंग न करें प्रयोग
- बिना विशेषज्ञ की सलाह या ट्रेनिंग के साइलेज या हे खुद से न बनाएं।
- गलत तरीके से बना चारा पशुओं के लिए हानिकारक हो सकता है।
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